प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune System):-
प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune System) "शरीर की वह क्षमता जिसके द्वारा शरीर बाहरी पदार्थो की पहचान कर लेता है व उन्हें बीना शरीर को क्षति पहुचाये निष्काषित कर देता है |" हम सभी के जीवन में कभी न कभी बीमारी पैदा करने वाले कारक जैसे जीवाणु , विषाणु , कवक एवं परजीवी जन्तुओ द्वारा संक्रमण होता है इन सभी बीमारियों से बचने के लिए शरीर में एक तंत्र पाया जाता है जिसे हम "प्रतिरक्षा तंत्र" कहते है | यह तंत्र शरीर में बीमारी उत्पन करने वाले कारको के संक्रमण से बचाता है| जब शरीर में प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर हो जाता है तो व्यक्ति जल्दी बीमार होने लगता है हमारे शरीर में स्वयं व पराये को पहचाने की क्षमता होती है अर्थात यह शरीर के बाहर से आने वाले समस्त कारको को बाहरी मानते हुए उन्हें शरीर से बाहर निकालने के लिए प्रतिरक्षा तंत्र को उतेजित करता है और बाहरी कारको को नष्ट कर दिया जाता है |
१ सहज या प्राकृतिक
2 उपार्जित
सहज / प्राकृतिक प्रतिरक्षा :-
- शारीरिक अवरोध:- रोग पैदा करने वाले सूक्ष्म जीवो को शरीर में प्रवेश करने से रोकता है जैसे - त्वचा , म्यूक्स झिल्ली तथा शारीरिक स्राव आदि
- पूरक तंत्र:- पूरक तंत्र प्रोटीन घटकों से मिलकर बना होता है यह लगभग 30 से आधिक प्रोटीनो का समूह होता है
- कोशिका :- शरीर में कुछ कोशिकाए भक्षक कोशिका की भाती कार्य करती है जैसे - मोनोसाईट , मेक्रोफैजेस
उपार्जित अथार्त जीवनकाल में विकसित प्रतिरक्षा :-
उपार्जित प्रतिरक्षा से तात्पर्य यह की हमारे जीवन काल में प्राप्त की गयी प्रतिरोधक क्षमता | यह जीव के जीवन काल के दोरान रोग के प्रतिरक्षा के रूप में विकसित होती है सूक्ष्मजीवो के विरुद्ध प्रतिरक्षी ( antibody) एवं कोशिकाओ का निर्माण किया जाता है यह शरीर को सूक्ष्मजीवो से बचाता है उनसे शरीर की रक्षा करता है | हम इसको आसान भाषा में समझते है जब शरीर में कोई सूक्ष्मजीव या रोगकारक प्रथम बार प्रवेश करता है तब शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र प्रतिरक्षी बनाकर जो प्रतिक्रिया करता है उससे प्राथमिक अनुक्रिया (primary Response) कहते है इस अनुक्रिया में एक विशेष प्रकार की कोशिकाए बनती है जिसे स्मृति कोशिकाए कहते है |
जब पुनः वही रोगकारक या सूक्ष्मजीव शरीर में प्रवेश करता है तो प्रतिरक्षा तंत्र पहले से निर्मित स्मृति कोशीकाओ की सहायता से ज्यादा मात्रा में प्रतिरक्षी निर्मित करता है तथा पहले से ज्यादा तेजी से कार्य करती है जिसे हम द्वितीयक-अनुक्रिया ( secondary-immune-response) कहते है| इस प्रकार की प्रतिरक्षा को दो भागो में विभाजित किया जाता है |
1 -सक्रीय प्रतिरक्षा :- जब कोई भी रोगकारक शरीर में प्रवेश करता है तब शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र प्रतिरक्षी बनाता है इस प्रकार की प्रतिरक्षा को सक्रीय प्रतिरक्षा कहते है यह प्रतिरक्षी थोडा धीमी होती है तथा प्रभावी होंने में भी समय लेती है| लेकिनं इसका प्रभाव लम्बे समय तक रहता है |
2 -निष्क्रिय प्रतिरक्षा :- जब प्रतिरक्षी को कृत्रिम रूप से शरीर में प्रवेश कराया जाये अथार्त जब शरीर में बाहर से बनाए प्रतिरक्षी को शरीर की रक्षा के लिए प्रवेश कराया जाता है तब प्राप्त प्रतिरक्षा को निष्क्रिय प्रतिरक्षा कहते है | यह कम समय के लिए प्रभावकारी होती है लेकिन इसकी प्रतिरक्षा शीघ्रता से प्रयत्नशील होती है|
सांप के काटे जाने अथवा घातक रोगों जैसे टिटेनस , रेबीज , डीफ्थिरिया के उपचार हेतु दिया जाने वाला एंटीविनम कृत्रिम निष्क्रिय प्रतिरक्षा उत्पन्न करता है|
टीकाकरण या सक्रीय प्रतिरक्षीकरण:-
टीकाकरण की संकल्पना का जन्म बहुत पहले ही हो गया था जब बहुत बार लोगो में देखा गया की जब लोग किसी बीमारी से ग्रसित होते है तथा जब स्वस्ठ हो जाते है तो वह रोग उनमे दुबारा नही होता है इसी पर रिसर्च की गयी और टीकाकरण की संकल्पना का जन्म हुआ | टीकाकरण में किसी बीमारी से बचने के लिए उसका टिका बनाया जाता है |इसमें विनाशित अथवा निष्क्रियत सूक्ष्मजीव अथवा उनके द्वारा उत्पन आवीषो की अतिसूक्ष्म मात्रा को शरीर में प्रवेश कराया जाता है इससे उस बीमारी के विरुध्द प्रतिरक्षा तंत्र एक प्रतिरक्षी तैयार कर लेता है| शरीर में स्मृति कोशिकाओ की एक विशिष्ट जनसंख्या का निर्माण हो जाता है और इन कोशीकाओ की संख्या लगातार बढती जाती है| जब पुनः वही संक्रमण होता है तो यही स्मृति कोशिकाए प्रतिरक्षा तंत्र के साथ मिलकर बड़ी संख्या में प्रतिरक्षी का निर्माण करती है तथा शरीर को उस बीमारी से बचाता है|
0 Comments
Please don't enter any spam link in comment box